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उत्तराखंड में 100 करोड़ का गोलमाल, 3 करोड़ के बिल ही जमा नहीं

सदन में रखी गई कैग रिपोर्ट ने खोली उत्तराखंड सरकार की पोल

देहरादून: गुरुवार को उत्तराखंड विधानसभा में पेश की गई कैग रिपोर्ट 2019-20 में उत्तराखंड में कुप्रबंधन और बजट समय पर खर्च करने के साथ ही करीब 100 करोड़ के कामों के उपयोगिता प्रमाण पत्र तक न दिए जाने का जिक्र किया गया हैं। यही नहीं 3 करोड़ खर्च करने के बाद सरकारी विभागों ने बिल ही नहीं दिए। कुल मिलाकर एक ओर नेता, अधिकारी और प्रदेश के नीति-नियंता बजट का रोना रोते हैं। वहीं, करीब 259 करोड़ रुपये योजनाओं और नीतियों के अभाव में विभागों ने 31 मार्च 2020 को अंतिम दिन सरंडर किए। वित्तीय वर्ष के खर्च पर हर बार कैग की रिपोर्ट पेश होती है, लेकिन कहीं न कहीं यह रिपोर्ट सिर्फ एक औपचारिता बनकर रह जाती है। या यूं कहें कि सिर्फ मीडिया की सुर्खियां बटोरने के बाद एक साल तक इस रिपोर्ट पर कोई चर्चा नहीं होती। कहीं न कहीं इन विभागों पर कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं होती जो उपयोगिता प्रमाण पत्र तक जमा नहीं कर रहे हैं। उन पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती जो बजट डकारने के बाद उसका बिल तक जमा नहीं करते? कहीं न कहीं कैग रिपोर्ट बीते साल का लेखा-जोखा और एक पुरानी बात बनकर रह जाती है।

क्यों नहीं हमारे उत्तराखंड के राजनेता कभी कैग रिपोर्ट हवाला देकर कोई आंदोलन करते? क्यों नहीं इस पर कोई पीआईएल हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में लगाई जाती। शायद आपने, यह कभी नहीं देखा होगा कि हमारे लोकतंत्र के किसी स्तम्भ ने कभी कैग रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लिया हो। कोई समाज का जागरूक वकील, नेता, पत्रकार या फिर समाजसेवी भी शायद आज तक इस रिपोर्ट का हवाला देकर कोर्ट के दरवाजे पर गया हो। आखिर तीन करोड़ की रकम किसी भी इलाके की सूरत-सीरत बदल सकती है। सरकार से लेकर नौकरशाही तक इसके लिए जो भी जिम्मेदार विभागीय व्यक्ति या व्यक्तियों की पड़ताल क्यों नहीं की जाती। शायद उत्तराखंड बने इतने साल बाद अभी तक किसी ने भी कैग रिपोर्ट का हवाला देकर कोई मोर्चा नहीं खोला होगा। चोर-चोर मौसेरे भाई वाली कहावत कहीं न कहीं सत्ता व्यवस्था विभागों में बैठे जिम्मेदार लोगों पर सटीक बैठती है।

उत्तराखंड में कुछ माह बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राज्य की जनता को भी कैग की रिपोर्ट का अध्ययन कर नेताओं से सवाल पूछने चाहिए कि आखिर आप लोग क्यों नहीं ऐसे मामलों पर कार्रवाई करते। पुराने गोलमाल का खुलासा करने की बजाय विभागीय बजटखोर फिर से नए-नए तरीके अपनाएंगे। बैंकों में डीपीआर बनाकर विश्व बैंक से लेकर न जाने कहां-कहां से लोन लेंगे। वित्तीय घाटा भी हर साल बढ़ना यही दर्शाता है।

उत्तराखंड विधानसभा सदन में पेश की गई भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट में राजकोषीय घाटे से लेकर राजस्व घाटे तक में उत्तराखंड के विभागों की पोल खुल कर सामने आई है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा 7657 करोड़ रुपये जा पहुंचा तो इसमें राजस्व घाटा 15 फीसद बढ़कर 2136 करोड़ रुपये हो गया। वित्तीय वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटा 7320 करोड़ रुपये था, जबकि राजस्व घाटा 980 करोड़ रुपये था।

कैग ने पाया कि राजस्व घाटे में 273 करोड़ रुपये दिखाए ही नहीं गए। राजकोषीय घाटे में भी 446 करोड़ रुपये कम दिखाए गए। राजस्व व पूंजीगत व्यय के गलत वर्गीकरण व ब्याज की देयता को हस्तांतरित न किए जाने के चलते यह अनियमितता पैदा हुई।

राजकोषीय व राजस्व घाटे के बढ़ने के पीछे की अहम वजह बताते हुए कैग ने कहा है कि चालू वित्तीय वर्ष में प्रदेश राजस्व प्राप्तियां बढ़ाने में न सिर्फ असफल रहा, बल्कि साल-दर-साल भी इसमें गिरावट दर्ज की जा रही है। 2018-19 में राजस्व प्राप्तियां 31 हजार 218 करोड़ रुपये थी और 2019-20 में यह 1.58 फीसद की कमी के साथ 30 हजार 723 करोड़ रुपये रह गई। प्रदेश के स्वयं कर राजस्व की बात करें तो पांच वर्ष की अवधि 2015-16 से 2019-20 में यह 44.16 से 37.47 फीसद पर आ गया है।

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