देहरादून: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की घड़ी जैसे ही नजदीक आ रही है वैसे ही कई नेता अलग-अलग पार्टियों के दामन थाम रहे हैं। कोई इस्तीफा दे रहा है तो कोई जॉइन कर रहा है। ऐसे में राज्य के राजनीतिक हालात हॉट हो गए हैं। अब चर्चा यह है कि कांग्रेस नेता किशोर उपाध्याय भाजपा में शामिल हो सकते हैं। दूसरी ओर भाजपा इस बार करीब 18 विधायकों के टिकट काटने की तैयारी में है। ऐसे में टिकट कटते समय कहीं न कहीं खलबली मचनी तय है। कुछ इधर जाएंगे, कुछ उधर जाएंगे…। चुनाव से पहले ऐसे दृश्य और हालात सभी के सामने देखने को होंगे। साथ ही साथ नेताओं की दल बदली से राज्य के चुनावी समीकरण निश्चित तौर पर प्रभावित होंगे। अब देखना होगा कि भाजपा किन 18 सिटिंग विधायकों को टिकट देने की वजाय पैदल करती है। दूसरी ओर ऐसा होने पर कौन विधायक शांत रहता है या फिर अपने रिश्तेदार या चहेते को टिकट दिलाने में सक्षम रहता है या फिर दूसरी पार्टी की ओर रुख करेंगे यह देखना दिलचस्प होगा।
अपको बता दें कि उत्तराखंड में अभी तक 2002, 2007, 2012, 2017 में चुनाव हो चुके हैं और अब फरवरी 2022 में चुनाव होने हैं। उत्तराखंड की जनता ने पहले भाजपा फिर कांग्रेस ऐसे ही कई बार अपना मत देकर दलों को सरकार बनाने के मौके दिए। देखने वाली बात होगी कि जब राज्य का गठन हुआ था तब यहां भाजपा की अंतरिम सरकार रही और भाजपा ने 2 साल में ही दो मुख्यमंत्री बदल डाले। जनता ने कहीं न कहीं इसे अदूरदर्शी फैसले या फिर नेताओं की आपसी गुटबाजी समझकर नकार दिया था और 2002 में कांग्रेस को भारी मतों और सीटों से जिताकर सरकार बनाने का मौका दिया था। ऐसा नहीं है कि भाजपा में ही गुटबाजी है। कांग्रेस में भी खेमेबाजी चरम पर है और इस दौरान हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाने की वजह राज्य की कमान नारायण दत्त तिवारी को सौंपी गई। वही पहले मुख्यमंत्री हैं जो अभी तक पूरी तरह 5 साल तक सरकार चला पाए हैं। नहीं तो कोई भी मुख्यमंत्री उत्तराखंड में अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। इस बार तीसरे मोर्चे के तौर पर जरूर आम आदमी पार्टी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन आपसी धड़ेबाजी और कोई बड़ा स्थानीय चेहरा अभी तक पार्टी अपने संगठन से नहीं जोड़ पाई है।
ऐसे में कितने और कहां कहां चुनावी समीकरण बिगड़ते हैं देखना दिलचस्प होगा। कहीं न कहीं चुनाव में दल बदली से राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं। ऐसे में कोई नेता पार्टी में खुद को उपेक्षित बता रहा तो कोई चुनाव का टिकट अपने रिश्तेदार या चहेते के नाम मांग रहा है। अभी दावेदारों की लिस्ट जारी होते ही सभी पार्टियों के नेताओं में जबरदस्त खलबली देखने को मिलेगी।