
देहरादून, उत्तराखंड: उत्तराखंड में मतगणना से पहले ही भाजपा नेताओं में अंदरखाने आपसी घमासान मचा है। चुनाव में भितरघात के आरोपों के बाद से पार्टी की मुश्किलें भी बढ़ गई है। इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद प्रदेश की सियासत गरमा गई है। इस बैठक के कई सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि पार्टी भितरघात के आरोपों के बाद से डैमेज कंट्रोल को लेकर गंभीर है।
ऐसे में पार्टी को अपने पुराने खेवनहार निशंक की याद आ गई। जो कि चुनाव बाद अहम भूमिका निभा सकते हैं। पार्टी बहुमत में आए तब भी और नहीं भी आए तब भी निशंक अहम भूमिका में होंगे। वहीं, प्रदेश भाजपा संगठन में भी एक बार फिर बदलाव की सुगबुगाहट तेज हो गई है। विदित हो कि प्रदेश में भाजपा सरकार में पिछले साल मार्च में नेतृत्व परिवर्तन हुआ था। तब सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का तख्ता पलट करते हुए गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके साथ ही प्रदेश भाजपा संगठन में भी नेतृत्व परिवर्तन कर दिया गया। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत को सरकार में मंत्री बनाया गया और त्रिवेंद्र सरकार में मंत्री रहे मदन कौशिक को प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी गई। ऐसे में कौशिक के सामने स्वयं को नई भूमिका में साबित करने की चुनौती थी, लेकिन चुनाव की मतगणना से पहले ही प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक और कई नेता भितरघात के आरोप लगाते हुए पार्टी मुखिया मदन कौशिक और अपने ही कार्यकर्ताओं पर सवाल खड़े कर चुके हैं। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का कहना है कि जिसे भी भितरघात की आशंका है उसे पार्टी फोरम पर लिखकर देना चाहिए।
भाजपा में अंदरखाने भितरघात के आरोपों को लेकर काफी चर्चा हो रही है। जिस तरह के आरोप लगे हैं, उसके बाद से पार्टी बैकफुट पर है। साथ ही कार्रवाई भी करना तय है। अभी तक एक मंत्री व चार विधायक अपनी-अपनी सीटों पर भितरघात के आरोप लगा चुके हैं। विधायक संजय गुप्ता, कैलाश गहतोड़ी, हरभन सिंह चीमा व केदार सिंह रावत और कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल ने अपनी-अपनी सीटों पर भितरघात के आरोप लगाए हैं। इसके अलावा वर्ष 2009 में लोकसभा की हरिद्वार सीट से भाजपा प्रत्याशी रहे जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यतींद्रानंद गिरी ने वीडियो जारी कर प्रदेश भाजपा संगठन की कार्यप्रणाली को लेकर नाराजगी जाहिर की है। जिसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने निशंक को दिल्ली बुलाकर मंथन किया है। आपको यह भी बता दें कि प्रदेश की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक भाजपा के पुराने त्रिमूर्ति में से एक हैं। एक पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी जो काफी अस्वस्थ और राजनीति से किनारे ही हो चुके हैं। वहीं, दूसरे भगत सिंह कोश्यारी जिन्हें पार्टी संगठन ने ही साइड कर राज्यपाल की जिम्मेदारी दे दी है। उनके खास लोगों को हालांकि पार्टी संगठन ने पहले चार साल तक अब चुनाव से कुछ दिन पहले और वर्तमान सीएम धामी को भी उन्हीं का शिष्य बताया जाता है। ऐसे में चुनाव मतगणना से पहले पार्टी में हो रही नेताओं की तनातनी को शांत करने में निशंक अहम भूमिका निभा सकते हैं।
विधानसभा चुनाव के परिणाम आने में भले ही 10 दिन का समय हो, लेकिन प्रदेश भाजपा संगठन में बदलाव की सुगबुगाहट महसूस होने लगी है। माना जा रहा कि प्रदेश संगठन की जिम्मेदारी गढ़वाल मंडल से किसी वरिष्ठ नेता को सौंपी जा सकती है। यदि भाजपा फिर से सत्ता में आती है तो वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक को सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है। रविवार को दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से हुई पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की मुलाकात को इस कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। उधर, विधानसभा चुनाव में भितरघात की एक के बाद एक शिकायतों से असहज भाजपा 10 मार्च तक वेट एंड वाच की रणनीति पर चल रही है। यही कारण है कि इस विषय पर पार्टी फिलहाल चुप्पी साधे है। भाजपा की सरकार बनी तब भी निशंक को अहम भूमिका मिलेगी और नहीं भी बनी तो भी निशंक संगठन और पार्टी के बिखरते नेताओं को एकजुट रखने में सक्षम हैं।
गौरतलब है कि उत्तराखंड में दोबारा सत्ता में आने के लिए भाजपा ने इस बार मिशन 60 प्लस का नारा दिया और दावा किया जा रहा है कि भाजपा इस बार इतिहास रचते हुए दोबारा सरकार बनाने जा रही है। लेकिन पार्टी के अंदर जिस तरह से भितरघात के आरोपों की झड़ी लगी हुई है। उससे पार्टी के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गई है। इस बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक से मुलाकात के बाद प्रदेश की सियासत में एक बार फिर बड़े बदलाव की चर्चा तेज हो गई है। प्रदेश संगठन में जिस तरह से भितरघात के आरोप लगे हैं, उसके बाद प्रदेश संगठन स्तर पर बड़े स्तर पर फेरबदल होना तय माना जा रहा है। साथ ही अगर भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो पार्टी के पुराने रणनीतिकार निशंक को ही नेतृत्व आगे कर सकता है। 2007 और 2012 में भी निशंक ने पार्टी नेतृत्व के सामने परिस्थितियों को सुलझाने में अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में अब एक बार फिर हाईकमान निशंक को बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकता है। चर्चा ये भी है कि पार्टी 10 मार्च के बाद प्रदेश संगठन में बड़ा फेरबदल कर सकती है।




