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जिंदा हुआ ₹1.5000000 के ‘कागजी’ पुस्तकालयों का जिन्न, मदन कौशिक की फिर बढ़ी मुश्किलें

जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से मामले में मांगा एक माह में जवाब

नैनीताल, ब्यूरो। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पूर्व मंत्री वर्तमान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और हरिद्वार शहर विधायक मदन कौशिक की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ा दी हैं। हरिद्वार में 2010 में कागजों में बने 16 पुस्तकालयों के घोटाले का जिन्न एक बार फिर जाग चुका है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने देहरादून निवासी सच्चिदानंद डबराल की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हरिद्वार में विधायक कार्यकाल के दौरान कागजों में बने डेढ़ करोड़ के 16 पुस्तकालयों को लेकर जवाब तलब किया है। कुछ दिन पहले भी इस मामले में हाईकोर्ट ने साक्ष्य प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे। अब मदन कौशिक को नोटिस जारी कर एक माह में जवाब पेश करने के निर्देश दिए गए हैं। अगली सुनवाई के लिए चार सप्ताह के बाद कि तिथि नियत की है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर कहा गया कि अभी तक पुस्तकालयों का संचालन नही हुआ है, जबकि सरकार की तरफ से कहा गया कि पुस्तकालयों का संचालन 2019 में ही हो गया था।

देहरादून निवासी याचिकाकर्ता सच्चिदानंद डबराल के अनुसार पुस्तकालय निर्माण का जिम्मा ग्रामीण अभियंत्रण सेवा विभाग को दिया गया और विभाग के अधिशासी अभियंता के फाइनल निरीक्षण और सीडीओ की संस्तुति के बाद काम की फाइनल पेमेंट की गई। इससे स्पष्ट होता है कि अधिकारियों की मिलीभगत से बड़ा घोटाला हुआ है। लिहाजा पुस्तकालय के नाम पर हुए इस घोटाले की सीबीआई जांच करवाई जाए।

बता दें कि आज बुधवार को नैनीताल हाई कोर्ट में देहरादून निवासी सच्चिदानंद डबराल की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि 2010 में तत्कालीन विधायक मदन कौशिक की विधायक निधि से करीब 1.5 करोड़ की लागत से 16 पुस्तकालय बनाने के लिए धनराशि जारी की गई थी। पुस्तकालय बनाने के लिए भूमि पूजन से लेकर उद्घाटन तक की फाइनल पेमेंट कर दी गई। दूसरी ओर आज तक धरातल पर किसी भी पुस्तकालय का निर्माण नहीं हुआ है। इससे स्पष्ट होता है कि विधायक निधि के नाम पर विधायक ने तत्कालीन जिला अधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी समेत ग्रामीण निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता के साथ मिलकर बड़ा घोटाला किया है। अब देखना होगा कि मदन कौशिक इस मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट नैनीताल में क्या जवाब पेश करते हैं। कहीं न कहीं इससे मदन कौशिक की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं।

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