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ऐतिहासिक मौण मेले में दो साल बाद उमड़े हजारों लोग, टिमरू से ऐसे मार रहे 1866 से मछलियां

ऐतिहासिक मौण मेले में दो साल बाद उमड़े हजारों लोग, टिमरू के पाउडर से ऐसे मार रहे 1866 से मछलियां

नई टिहरी/नैनबाग, ब्यूरो। आज रविवार को वर्ष 1866 से लगातार चली आ रही परंपरा को निभाते हुए पहाड़ों की रानी मसूरी के नजदीक जौनपुर में उत्तराखंड की ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर मौण मेला का आयोजन आज किया गया। वर्ष 1866 से लगातार इस मेले का आयोजन किया जाता रहा है। इस मेले में हजारों की तादाद में ग्रामीण हर बार की तरह इस बार भी अपने पारंपरिक वाद्ययंत्रों और औजरों के साथ अगलाड़ नदी में मछलियां पकड़ने के लिए उतरे। कोरोना काल के दो साल बाद आयोजित मेले में इस बार स्थानीय लोगों का जमावड़ा लगा रहा। लोगों टिमरू के पाउडर से मछलियों को घायल किया और पारंपरिक अंदाज में ढोल-दमाऊं की थाप पर मछलियां मारीं। आज करीब 20000 स्थानीय और पर्यटकों ने भी मौण मेले का आनंद लिया।

बता दें कि टिहरी जिले में मसूरी के पास जौनपुर में रविवार को ऐतिहासिक मौण मेला का आयोजन किया गया। कोरोना के कारण पिछले दो सालों से इस मेले का आयोजन नहीं हो रहा था। हालांकि इस बार बड़ी संख्या में ग्रामीण इस मेले में शिरकत करने पहुंचे। जौनपुर में यह मेला साल 1866 से आयोजित होता आ रहा है। मौण मेले को लेकर ग्रामीणों में खास उत्साह दिखा। ग्रामीण अपने पारंपरिक वाद्ययंत्रों और औजरों के साथ अगलाड़ नदी में मछलियों को पकड़ने के लिए उतरे। मेले से पहले यहां अगलाड़ नदी में टिमरू के छाल से निर्मित पाउडर डाला गया। इससे मछलियां कुछ देर के लिए बेहोश हो जाती हैं। इसके बाद उन्हें पहले की तरह इस बार भी लोगों ने नदी के पानी में उतरकर पकड़ा।

दरअसल, हर साल बरसात की शुरूआत के साथ ही जून के अंतिम सप्ताह में मछली मारने के सामूहिक मौण मेले का आयोजन प्राचीन समय से ही किया जाता रहा है। इस मेले में क्षेत्र के हजारों की संख्या में बच्चे, युवा और बुजुर्ग नदी की धारा के साथ मछलियां पकड़ने उतर जाते हैं। खास बात यह है कि इस मेले में पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखा जाता है। इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुंडियाड़ा, फटियाड़ा, जाल और हाथों से पकड़ते हैं, जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती हैं, वह बाद में ताजे पानी में जीवित हो जाती हैं। टिमरू का पाउडर बनाकर मौण डालने की जिम्मेदारी हर साल अलग-अलग पट्टी के लोगों को दी जाती है। मेले में सैकड़ों किलो मछलियां पकड़ी जाती है, जिसे ग्रामीण प्रसाद स्वरूप घर ले जाते हैं और बनाकर मेहमानों को परोसते हैं। इस मेले में पारंपरिक लोक नृत्य भी किया जाता है, जो ढोल दमाऊं की थाप पर होता है।

यह भी बता दें कि मौण मेले का शुभारंभ 1866 में तत्कालीन टिहरी नरेश ने किया था। तब से जौनपुर में निरंतर मेले का आयोजन किया जाता है। क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि इसमें मेले टिहरी नरेश खुद अपने लाव लश्कर और रानियों के साथ मौजूद रहते थे। मौण मेले में सुरक्षा की दृष्टि से राजा के प्रतिनिधि उपस्थित रहते थे। सामंतशाही के पतन के बाद सुरक्षा का जिम्मा ग्रामीण स्वयं उठाते हैं और किसी भी प्रकार का विवाद होने पर क्षेत्र के लोग स्वयं मिलकर मामले को सुलझाते हैं।

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