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चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही सबसे लंबी डबल लेन सुरंग, इतनी कम होगी यमुनोत्री की दूरी

चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही सबसे लंबी डबल लेन सुरंग, इतनी कम होगी यमुनोत्री की दूरी

उत्तरकाशी, ब्यूरो। चारधाम यात्रा मार्ग पर उत्तराखंड की सबसे लंबी डबल लेन सुरंग तैयार हो रही है। एनएच 94 पर बन रही इस सुरंग के तैयार होने के बाद यमुनोत्री धाम की धरासु से दूरी तकरीबन 26 किलोमीटर कम हो जाएगी। उत्तराखण्ड की सबसे लंबी डबल लेन सुरंग सीमांत उत्तरकाशी जिले में बनने जा रही है। सब कुछ ठीक रहा तो मार्च 2024 तक ये सुरंग आवहाजही के लिए तैयार हो जाएगी। उत्तरकाशी जिले में चार धामों में दो धाम आते हैं जिसमे प्रथम धाम यमनोत्री और दूसरा गंगोत्री है। श्रद्धालु अपनी यात्रा यमनोत्री धाम से शुरू करता है और उसके बाद गंगोत्री के लिए प्रस्थान करता है।

चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही सबसे लंबी डबल लेन सुरंग, इतनी कम होगी यमुनोत्री की दूरी
चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही सबसे लंबी डबल लेन सुरंग, इतनी कम होगी यमुनोत्री की दूरी

बता दें कि चार धाम यात्रा ऋषिकेश से शुरू होती है। जिसके बाद यात्री धरासू पहुंचता है। ऋषिकेश से धरासू की दूरी करीब 142.5 किलोमीटर है। धरासू से ब्रह्मखाल-राड़ी-बड़कोट होते हुए यात्री यमनोत्री धाम जाता है। धरासु से यमनोत्री जानकीचट्टी की दूरी करीब 103 किलोमीटर है।

धरासू से बड़कोट पहुचंने के लिए ब्रमखाल से सिल्क्यारा-राड़ी टॉप होते हुए बड़कोट पहुँचते हैं। जिसमे कई घुमाऊ बैंड और सकरे बैंड हैं। चारो धामो में ऑल वैदर रोड का निर्माण कार्य किया जा रहा है जिसमे सिल्क्यरा से जंगल चट्टी तो 4.5 किमोलोमिटर डबल लेन सुरंग का निर्माण किया जा रहा है । इस सुरंग के बनने से यमनोत्री जाने का रास्ता करीब 26 किलोमीटर कम हो जाएगा। राड़ी टॉप के जीरो और संकरे बैंडों से यात्रियों को निजात मिलेगी।

853 करोड़ की लागत से बन रही सिल्क्यरा सुरंग प्रदेश की सबसे लंबी सुरंग है। जिसमे 3.1 किलोमीटर तक सुरंग का कार्य लगभग पूरा हो चुका है। इस कार्य को राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) कर रही है।

एनएचआईडीसीएल के महाप्रबंधक कर्नल दीपक पाटिल बताते हैं कि इस सुरंग को न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड से बनाया जा रहा है जो वर्तमान में सुरंग बनाने की विश्व प्रचलित पद्धति है। इसमें हम चट्टान तोड़ने के लिए ड्रिलिंग और ब्लास्टिंग दोनों का प्रयोग किया जाता है है। खोदाई के दौरान चट्टानों का अध्ययन और निगरानी कंप्यूटराइज्ड मशीनों से होती है। इससे इंजीनियरों को सुरंग के अंदर आने वाली अगली कोमल व कठोर चट्टान की स्थिति मालूम पड़ जाती है। इस सुरंग का व्यास 15.095 मीटर है।

पाटिल बताते हैं कि सुरंग में आने और जाने के लिए अलग-अलग लेन होंगी। एकीकृत नियंत्रण प्रणाली के तहत सुरंग के अंदर की गतिविधि के स्वचालन में सहायता मिलेगी। इसमें सांख्यिकीय डेटा का रखरखाव, संग्रह और विश्लेषण, आपातकालीन सेंसर, वायु गुणवत्ता और वेंटिलेशन सिस्टम सुनिश्चित करना शामिल है। सुरंग के बाहर नियंत्रण कक्ष होगा। आगजनी की स्थिति में सुरंग के भीतर स्वतः पानी की बौछार होने लगेगी और पंखे बंद हो जाएंगे। इसकी सूचना वाहन चालकों को भी एफएम के जरिये दी जाएगी। सुरंग के अंदर सुरक्षित ड्राइविंग के लिए स्वचालित प्रकाश नियंत्रण प्रणाली भी होगी।

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