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उत्तराखंड के दो और प्रधानों की कुर्सी पर मंडराया खतरा, जानें क्या है कारण

देहरादून/उत्तरकाशी, ब्यूरो। उत्तराखंड में एक माह पहले जहां नई टिहरी जनपद के प्रतापनगर ब्लाॅक के सेम गांव के प्रधान को तीसरी संतान होने के बाद कुर्सी से पैदल कर दिया गया था, वहीं अब ऐसी ही खबर सीमांत जनपद उत्तरकाशी से आ रही है। यहां मोरी और नौगांव विकासखंड में दो प्रधानों की तीसरी संतान होने के बाद कुर्सी खतरे में है। दोनों ही प्रधानों को सीडीओ दफ्तर से कुछ दिन पहले नोटिस जारी किया गया था। जल्द ही इन्हें पद और जिम्मेदारी से पैदल कर दिया जाएगा।

दरअसल, टिहरी के बाद अब उत्तरकाशी जिले के दो गांवों में ग्राम प्रधानों के तीन बच्चे होने का मामला सामने आया है। इस मामले में मुख्य विकास अधिकारी कार्यालय से नोटिस जारी किया गया था। उत्तरकाशी में विकासखंड नौगांव के कुथनौर गांव में ग्राम पंचायत चुनाव के दौरान निर्वाचित हुई प्रधान की उस समय दो संतानें थी, लेकिन एक संतान प्रधान निर्वाचित होने के बाद हुई है। इस मामले में कुथनौर के एक ग्रामीण ने जिलाधिकारी से शिकायत की। जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने मामले की जांच मुख्य विकास अधिकारी को सौंपी। मामले की सुनवाई विगत मंगलवार को होनी थी, लेकिन संबंधित प्रधान सुनवाई से पहले ही घर लौट गई। मुख्य विकास अधिकारी गौरव कुमार ने बताया कि इस मामले में प्रधान की बर्खास्तगी की संस्तुति की फाइल तैयार कर जिलाधिकारी को भेजी जाएगी। इसी तरह का एक मामला मोरी ब्लाक के एक गांव का भी है। जिसकी जांच की जा रही है।

एक माह पहले ही टिहरी जिले के ग्राम पंचायत सेम के ग्राम प्रधान विक्रम सिंह नेगी की तीसरी संतान होने के बाद ग्रामीणों ने शिकायत की तो उन्हें भी पद से हटा दिया गया था। तीसरी संतान होने पर सेम गांव के ही विकेंद्र सिंह ने शिकायत डीएम नई टिहरी से की थी। काफी समय बाद जब प्रधान ने खुद ही इस्तीफा नहीं दिया तो डीएम ने हस्तक्षेप कर उनकी प्रधानी छीन ली थी। “पंचायत राज अधिनियम 2016 (यथा संशोधित-2019) की धारा 8 की उपधारा (1) द” का स्पष्ट दोषी पाए जाने पर डीएम इवा आशीष श्रीवास्तव ने 25 मार्च को ग्राम प्रधान को पद से हटाने के आदेश जारी किए थे।

दरअसल, उत्तराखंड में स्थानीय निकाय और ग्राम पंचायत के जन प्रतिनिधियों के लिए अधिकतम दो संतान की शर्त लागू है। ये शासनादेश प्रदेश की सबसे पहली निर्वाचित एनडी तिवारी सरकार के समय यानि दो जुलाई 2002 से ही लागू है। इस शर्त के चलते ऐसे लोग प्रदेश में पंचायत चुनाव में भाग नहीं ले सकते हैं, जिनकी जुलाई 2002 के बाद तीसरी संतान पैदा हुई है। चुनाव जीतने के बाद यदि किसी प्रतिनिधि की तीसरी संतान होती है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी।

उत्तराखंड में काबिज भाजपा सरकार ने 2018 में पंचायती राज एक्ट में भी संशोधन कर इसमें न्यूनतम शिक्षा की शर्त भी लागू की। शैक्षिक योग्यता के प्रावधान में किए गए संशोधन के अनुसार अब पंचायत प्रमुखों व सदस्यों के लिए सामान्य श्रेणी के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता हाईस्कूल या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होनी जरूरी है। सामान्य श्रेणी की महिला, अनुसूचित जाति, जनजाति के उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता आठवीं पास रखी गई है। कहीं न कहीं अगर आपको भी नगर निकाय और पंचायत स्तर की राजनीति में अपना भविष्य बनाना है तो दो से अधिक संतान पैदा न होने दें। वरना इन प्रधानों की तरह आपकी भी कुर्सी पर खतरा मंडरा जाएगा।

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