सात दिवसीय नाट्य समारोह का सुखद समापन, चंद्रवीर गायत्री को मिला संस्कृति अनुराग सम्मान
सात दिवसीय नाट्य समारोह का सुखद समापन
चंद्रवीर गायत्री को प्रदान किया गया संस्कृति अनुराग सम्मान
देहरादून, ब्यूरो। उत्तर नाट्य संस्थान और दून विश्वविद्यालय के रंगमंच विभाग के संयुक्त तत्वावधान में चल रहे सात दिवसीय नाट्य समारोह का समापन हुआ। समापन अवसर पर डा प्रताप सहगल के नाटक का शानदार मंचन हुआ। संगीत नाटक अकादमी पुरुस्कार से सम्मानित डा. राकेश भट्ट ने नाटक का निर्देशन किया। नाटक के कथासार के अनुसार –
गुप्त साम्राज्य काल में सम्राट बुद्धगुप्त, जो की नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं, विश्वविद्यालय के शैक्षिक उन्नयन के लिए तथा उसके शोध विस्तार के लिए वे सदैव तत्पर रहते हैं। विश्वविद्यालय में चल रही परंपरागत शैक्षिक पद्धतियों तथा वहां किए जा रहे शोध कार्यों की गुणवत्ता के लिए वे गुणात्मक सुधार चाहते हैं।
इसके लिए उनकी इच्छा है कि आचार्य आर्यभट्ट किशोर वय में ही नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति पद का भार ग्रहण करें। किंतु इधर आर्यभट्ट अपने शोध कार्यों में गहन रूप से तल्लीन हैं। उनके पास समय ही नहीं के वे इतना बड़ा पद संभाल सकें। उस पर केतकी का प्रेम संबंध जी आर्यभट्ट के निजी जीवन का एक अलग अंतर्द्वंद है। इन सबके बाद भी सम्राट बुद्धगुप्त का सदैव यह खुला प्रस्ताव है कि आर्यभट्ट जब चाहें विश्वविद्यालय के कुलपति पद का भार ग्रहण कर सकते हैं।
इधर, दूसरी ओर समाज में फैली रूढ़िवादिता और मिथ्या ज्ञान का प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ शिक्षक समाज को जब इस बात का पता चलता है कि आर्यभट्ट जैसा प्रतिभाशाली विद्वान नालंदा विश्वविद्यालय का कुलपति बनने वाला है तो षड्यंत्रों के बीज बोना शुरू कर देते हैं। कूप मंडूक समाज को एक अवैज्ञानिक और सीमित सोच की परिधि में रख कर उसका नेतृत्व करने वाले धूर्त आचार्य चूड़ामणि व चिंतामणि जैसे लोगों को इस बात की चिंता है यदि आर्यभट्ट के अन्वेषण समाज और राष्ट्र के समक्ष आ गए तो उनके द्वारा फैलाए गए मिथ्या ज्ञान का भ्रम टूट जाएगा। समाज में उनका झूठा प्रभाव समाप्त हो जायेगा। क्योंकि आर्यभट्ट ने शून्य के सिद्धांत, दशमलव के सिद्धांत, पृथ्वी को उसकी परिधि में घुमने के सिद्धांत, सूर्य चंद्र को उनकी दूरी नापने का सिद्धांत आदि महत्वपूर्ण ज्ञान को वैज्ञानिक सोच के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास जो कर एक नवेनमेशी समाज को स्थापित करना चाहा। आर्यभट्ट के इन्हीं प्रयोगों के कारण जब तथाकथित ज्ञान और रूढ़िवादी परंपराएं खंडित हुईं तो बड़े बड़े षड्यंत्रों का जाल बुना गया और उन्हें गहरे हिंसा के दावानल में झोंक दिया गया।
क्या बुधगुप्त आर्यभट्ट को कुलपति बना सके? क्या आर्यभट्ट और केतकी का विवाह हो सका? क्या आर्यभट्ट एक विद्वत समाज का निर्माण कर सके? इन्ही प्रश्नों की खोज में नाटक “अन्वेषक” लेखक द्वारा आर्यभट्ट से कहलाई गई पंक्तियां कि – हर पुराना ज्ञान त्याज्य नहीं होता और हर नवीन परंपरा अपनाने योग्य नहीं होती, उस वैज्ञानिक साम्य का प्रतिबिंब है जहां हमे उस समाज का निर्माण करना है जिसमे मूल्यों की रक्षा भी हो और वैज्ञानिक सोच का भी विकास हो।
पात्रों में मंच पर
नट – गणेश गौरव
नटी – सोनिया नौटियाल
प्रतिहारी – चंद्रभान कुमार
बुधगुप्त – अरुण ठाकुर
महामात्य – नितिन कुमार
अमात्य – भरत दुबे
चूड़ामणि – सिद्धांत शर्मा
चिंतामणि – राजित राम वर्मा
आर्यभट्ट – कपिल पाल
केतकी – लक्षिका पांडे
लाटदेव – रिपुल वर्मा
निशंकु – हर्षित गोयल
कुलपति – नेहा
(विद्वत परिषद के सदस्य)
एक – शिवम यादव
दो – हिमांशु यादव
तीन – भावना नेगी
(सामान्य सदस्य)
गणेश गौरव, हिमांशी
अकम्पन – निखिलेश यादव
ढिंढोरची – हिमांशु, प्रियांशी
नृत्य – रीतिका चंदोला, विशाल
पार्श्व मंच –
वस्त्र विन्यास, मुक सज्जा – पायल/ भरत दुबे
प्रकाश टी.के.अग्रवाल/जिम्मी
ध्वनि संयोजन – उज्ज्वल जैन
मंच प्रबंधन – नेहा, पायल, भरत, मनीष सैनी
मंच शिल्प – रिपुल वर्मा, गीतांजलि पोद्दार
पार्श्व गायन -संस्कृति बिजलवान, सोनिया नौटियाल
संगीत निर्देशन -पुरुषोत्तम
सह निर्देशन – कपिल पाल
सलाहकार -डा अजीत पंवार
लेखक डा. प्रताप सहगल
परिकल्पना, निर्देशन – डा. राकेश भट्ट ने किया
समापन अवसर पर प्रख्यात समाजसेवी व आंचलिक फिल्म एसोसिएशन के अध्यक्ष चंद्रवीर गायत्री को संकृति अनुराग सम्मान प्रदान किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय अभिनय विभाग के पूर्व अध्यक्ष दिनेश खन्ना, कार्यक्रम अध्यक्ष कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल के अतिरिक्त एस पी ममगाईं, रौशन धस्माना, श्रीश डोभाल, सुवर्ण रावत, आदि मौजूद रहे।