शिमला: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में दो सिविल जजों की नियुक्तियों को आठ साल बाद खारिज कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि नियमों के विपरीत पूरी की गई चयन प्रक्रिया अवैध है। इसलिए इन नियुक्तियों को रद्द किया जाता है। अदालत ने अपने निर्णय में आगे कहा कि न्याय प्रक्रिया में जनमानस के गूढ़ विश्वास के दृष्टिगत यह वांछित है कि इस प्रक्रिया से जुड़े लोगों का चयन पारदर्शी तरीके से हो। यदि लोगों के मामलों का निपटारा करने वाले अधिकारी की अपनी चयन प्रक्रिया नियमों के विपरीत हो, तो इससे लोगों का न्याय पालिका से विश्वास उठ जाएगा। प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा की गई गलती पर भी हाई कोर्ट ने आयोग को चेताया कि भविष्य में इस तरह की गलती न दोहराई जाए। न्यायाधीश तरलोक सिंह चैहान और न्यायाधीश संदीप शर्मा ने दोनों जजों की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निपटारा करते हुए दो सिविल जजों की नियुक्तियों को रद्द करने का फैसला सुनाया। दोनों जज वर्ष 2013 बैच के एचपीजेएस अधिकारी थे। मामलों का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि दोनों जजों की नियुक्तियां उन पदों के खिलाफ की गई, जिनका कोई विज्ञापन नहीं दिया गया। बिना विज्ञापन के इन पदों को भरने पर कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग को चेताया कि भविष्य में ऐसी लापरवाही न करे।
आपको बता दें कि मामले के अनुसार पहली फरवरी 2013 को प्रदेश लोक सेवा आयोग ने सिविल जजों के आठ खाली पदों को भरने के लिए विज्ञापन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए। इनमें छह पद पहले से रिक्त थे और दो पद भविष्य में रिक्त होने थे। आयोग ने अंतिम परिणाम निकाल कर कुल 8 अभ्यर्थियों की नियुक्तियों की अनुशंसा सरकार से की व अन्य सफल अभ्यर्थियों की एक सिलेक्ट लिस्ट भी तैयार की। इस बीच प्रदेश में दो सिविल जजों के अतिरिक्त पद सृजित किए गए। लोक सेवा आयोग ने इन दो पदों को सिलेक्ट लिस्ट से भरने की प्रक्रिया आरंभ की और इन दो अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने की अनुशंसा की। सरकार ने इन्हें नियुक्तियां भी दे दी थीं। कोर्ट ने दोनों की नियुक्तियों को रद्द करते हुए कहा कि इन नए सृजित पदों को कानूनन विज्ञापित किया जाना जरूरी था, ताकि अन्य योग्यता रखने वाले अभ्यर्थियों को इन पदों के लिए प्रतिस्पर्धा का मौका भी मिलता। कोर्ट ने फैसले में स्पष्ट किया है कि इन जजों की नियुक्तियां रद्द होने से इन पदों को वर्ष 2021 की रिक्तियां माना जाए व इन्हें भरने की प्रक्रिया कानून के अनुसार की जाए। इस फैसले से कहीं न कहीं न्यायपालिका पर विश्वास बढ़ा है।