गैर तकनीकी अधिकारी के हवाले पेयजल निगम एमडी का प्रभार, काम कैसे होगा सरकार?
उत्तराखंड पेयजल निगम में नियमावली और एक्ट के विरुद्ध गैर-तकनीकी अधिकारी अपर सचिव उदित नारायण को सौंपी गई है प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी
विभागीय नियमावली की धज्जियाँ उड़ने की चर्चाओं का बाजार गर्म
देहरादून, उत्तराखंड: जिस पद पर तकनीकी अधिकारी ही तैनात हो सकता है वहां उत्तराखंड शासन ने गैर तकनीकी अधिकारी अपर सचिव उदित नारायण को पेयजल एमडी की जिम्मेदारी सौंपी है। ऐसे में पेयजल निगम के साथ ही आम लोगों में भी विभागीय नियमों की धज्जियां उड़ाई जाने की चर्चाएं जोरों पर है। वहीं पेयजल मंत्री बिशन सिंह चुफाल का कहना है कि जल्द ही डीपीसी के बाद योग्य अफसर को एमडी की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
आपको बता दें कि उत्तराखंड राज्य के अति महत्वपूर्ण पेयजल, सीवर से जुड़े विभाग, उत्तराखंड पेयजल संसाधन एवं विकास निगम में ग्रैजुएट इंजीनियर ही प्रबंध निदेशक हो सकता है। जबकि सरकार द्वारा नॉन टेक्निकल अधिकारी को चार्ज दिया गया है। सूत्रों के अनुसार इससे एक्ट और विभागीय नियमावली का उल्लंघन होने से अधिकारियों कर्मचारियों के साथ ही आमजन में भी तमाम प्रकार की चर्चायें चल रही हैं।
मजेदार बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी जल जीवन मिशन योजना और नमामि गंगे जैसी परियोजनाओं में तकनीकी निर्णय भी नॉनटेक्निकल अधिकारी अपर सचिव उदित नारायण द्वारा ही लिए जा रहे हैं। जिससे योजनाओं में नॉन टेक्निकल अधिकारी द्वारा तकनीकी निर्णय लिए जाने से भविष्य में तमाम तकनीकी खामियां पैदा होने का भी खतरा पैदा हो गया है और परेशानी जनता को ही झेलनी पड़ेगी। तब शायद जिम्मेदारी के निर्धारण की भी लंबी-लंबी फाइलें बनेंगी और मेज-मेज पर फुटबाल की तरह घूमती रहेंगी।
सूत्रों के अनुसार पिछले एक माह से अधिक समय से प्रभारी प्रबंध निदेशक पेयजल निगम को बिल्कुल भी समय नहीं दे पा रहे हैं। जबकि जल जीवन मिशन को समयबद्ध रूप से तेजी से पूरा किया जाना है। इस कारण कर्मचारी भी आंदोलन की राह पर है। सबके जेहन में यही सवाल घूम रहा है कि यदि प्रभारी अधिकारी समय नहीं दे पा रहा हो तो ऐसी प्रभारी व्यवस्था क्या सालों साल चल सकती है और जब मुखिया ही नियम तोड़कर नियुक्त हो तो अपने कर्मचारियों से वह नियमों का पालन कैसे करा पाएंगे।
अब देखना दिलचस्प होगा कि सरकार एक्ट और नियमावली का पालन करवाएगी या इसी प्रकार प्रभारी और जुगाड़ू व्यवस्था से नियमों की धज्जियां उड़ती रहेंगी? नियमों में साफ लिखा है कि भारत में विधि द्वारा स्थापित किसी विश्वविद्यालय से सिविल विद्युत या यांत्रिक अभियंत्रण में कम से कम स्नातक की उपाधि या राज्य सरकार द्वारा उसके समकक्ष मान्यता प्राप्त कोई अर्हता रखता हो उसी को प्रबंधन निदेशक बनाया जा सकता है।
वही संबंध में पेयजल मंत्री बिशन सिंह चुफाल का कहना है कि काफी समय से जल निगम एमडी का प्रभार अपर सचिव के पास है। नियमानुसार कोई योग्य अफसर न होने के कारण एमडी का प्रभार अपर सचिव को दिया गया है। जल्द ही डीपीसी होने के बाद इस संबंध में योग्य अफसर को नियमानुसार एमडी का प्रभाव सौंपा जाएगा।