उत्तराखंड

सरहद की हिफाजत की ली सौगंध

देहरादून। बात जब सरहद की हिफाजत की हो तो उत्तराखंड का नाम सबसे पहले आता है। मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करना देवभूमि की युवाओं की पुरानी परंपरा रही है। भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) से आज 314 कैडेट्स पासआउट होकर देश की सेना में अफसर बन गए।

पासिंग आउट परेड में अंतिम पग भरकर उत्तर प्रदेश के 51, हरियाणा के 30 और उत्तराखंड के 29 कैडेट्स सेना में अफसर बने। शनिवार सुबह नौ बजे बतौर रिव्यूइंग ऑफिसर सेंट्रल कमांड के जीओसी इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल योगेंद्र डिमरी पासिंग आउट परेड की सलामी ली। इस दौरान 11 मित्र देशों के 30 कैडेट्स भी अंतिम पग भरकर अपने-अपने देश की सेनाओं का हिस्सा बन बने।

पासिंग आउट परेड में पहले बतौर रिव्यूइंग ऑफिसर सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे को शामिल होना था। लेकिन, किन्हीं कारणों से एक दिन पहले उनका कार्यक्रम रद्द हो गया। वहीं शनिवार को अफसरों को परिजन में परेड में पहुंचे। सैन्य अफसर की शपथ लेते ही युवा गदगद नजर आए।

सुबह 8 बजकर 55 मिनट पर मार्कर्स काल के साथ परेड शुरू हुई। भारत माता तेरी कसम तेरे रक्षक बनेंगे हम, आईएमए गीत पर कदमताल करते जेंटलमैन कैडेट ड्रिल स्क्वायर पर पहुंचे तो लगा कि विशाल सागर उमड़ आया है। एक साथ उठते कदम और गर्व से तने सीने दर्शक दीर्घा में बैठे हर एक नागरिक के भीतर ऊर्जा का संचार कर रहे थे। परेड के बाद निजाम पवेलियन में आयोजित पीपिंग व ओथ सेरेमनी में भाग लेने के बाद सभी जेंटलमैन कैडेट सेना में अफसर बन गए हैं।

उत्तराखंड के युवाओं में देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी है। आईएमए से सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त कर पासआउट होने वाले जेंटलमैन कैडेट्स की संख्या इसकी तस्दीक करती है। जनसंख्या घनत्व के हिसाब से देखें तो देश को सबसे अधिक जांबाज देने वाले राज्यों में उत्तराखंड शुमार है। आईएमए में हर साल दो बार जून और दिसंबर में आयोजित होने वाली पासिंग आउट परेड में इसकी झलक दिखती है।

पिछले एक दशक के दौरान शायद ही ऐसी कोई परेड हो, जिसमें कदमताल करने वाले युवाओं में उत्तराखंडियों की तादाद अधिक न रही हो। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के कैडेट्स की संख्या भले ही सबसे अधिक है, मगर इसकी तुलना वहां की आबादी के हिसाब से करें तो सेना को जांबाज देने में इस बार भी उत्तराखंड ही अव्वल है। राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार जैसे बड़े राज्य भी उत्तराखंड से बहुत पीछे हैं।

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