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सिलक्यारा सुरंग में 4 दिन से जारी 40 मजदूरों को बचाने की जंग, कौन है जिम्मेदार? बाबा बौख नाग का प्रकोप या अधूरी भूगर्भीय तकनीकी जांच; पढें ये खास रिपोर्ट

सिलक्यारा सुरंग में जारी 40 मजदूरों की जिंदगी बचाने की जंग, आखिर कौन है इसका जिम्मेदार?
दैवीय प्रकोप या अधूरी भूगर्भीय और तकनीकी जांच; तफ़्तीस जारी; खास रिपोर्ट….
सिलक्यारा सुरंग में 4 दिन से जारी 40 मजदूरों को बचाने की जंग, कौन है जिम्मेदार? बाबा बौख नाग का प्रकोप या अधूरी भूगर्भीय तकनीकी जांच; पढें खास रिपोर्ट…
सिलक्यारा बैंड, उत्तरकाशी, ब्यूरो। देवभूमि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद की यमुना और गंगा घाटी को जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना या यूं कहें कि जो इसके बीच की दूरी को कम करने का प्लान वह कहीं न कहीं अधर में लटकता हुआ दिख रहा है।
यहां बौख नाग देवता के प्रकोप से ऐसा हो रहा है या अधूरी भूगर्भीय तकनीकी जांच के, यह कहना मुश्किल है। बिना तकनीकी और भूगर्भीय जांच के इतने बड़े पहाड़ (तकरीबन 4.5 किलोमीटर) को ड्रिल कर जो यह सुरंग बन रही है, उसका अभी शुरुआती दौर था। सिलक्यारा बैंड से करीब 2200 मीटर तक सुरंग खोदी जा चुकी है जबकि बड़कोट की तरफ से पौल गांव से भी कुछ सुरंग का निर्माण हो चुका है, लेकिन दीपावली के दिन जो यहां पर भूधंसाव से दर्दनाक हादसा हुआ है और करीब चार दिन बाद भी 40 मजदूर जिंदगी और मौत के बीच जद्दोजहद कर रहे हैं, उसका जिम्मेदार आखिर किसे ठहराया जाए?
इन्हें बचाने के लिए शासन प्रशासन के साथ ही निर्माण कर रही कंपनी, आइटीबीपी, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस लगी हुई है; लेकिन अभी तक किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं। तीसरा दिन बीतने तक जितना भी सुरंग को खोदा गया था वह पूरी तरह धंस गया और फिर से तकनीकी विशेषज्ञों ने मिलकर एक मोटे पाइप की चौड़ाई का  के आकार का होल नुमा रास्ता बनाकर किसी तरह इन 40 मजदूर तक पहुंचाने की जंग जारी है।
इसके लिए बाकायदा असेंबल्ड मशीनें देहरादून, हरिद्वार और दिल्ली से आई हैं। अब देखना होगा कि इन 40 मजदूरों की जान बचाई जाती है या फिर नहीं। हर कोई इनके जिंदा रहने की दुआ और प्रार्थना प्रभु से कर रहा है।
आपको बता दें कि यमुना घाटी और गंगा घाटी के बीच यहां के प्रसिद्ध देव बाबा बौख नाग का पर्वत है और यहां राड़ी टॉप पर हर साल सर्दियों में इतनी बर्फबारी होती है की गंगा और यमुना घाटी का संपर्क पूरी तरह से टूट जाता है बड़ी मशक्कत के बाद कई बार मशीनों द्वारा बर्फ हटाकर यहां रोड दुरुस्त की जाती है कहीं ना कहीं यह सुरंग एक महत्वपूर्ण योजना थी, लेकिन बिना तकनीकी और भूगर्भीय जांच के इतने बड़े पहाड़ को बड़ी-बड़ी मशीनों से चलने करना कितना जायज है यह आने वाला वक्त ही बताएगा। स्थानीय लोग और जो इस इलाके को भली भांति जानते हैं और थोड़ी पर्यावरण और पहाड़ी क्षेत्र की समझ रखते है, वह जरूर समझते होंगे कि यहां बांज और बुरांश का घना जंगल है।
बांज के पेड़ जमीन से पानी को अपनी ओर खींचते और सुरक्षित रखते हैं। जानकारों की माने तो कहीं न कहीं इस पर्वत के बीचों बीच कोई बड़ी झील भी हो सकती है जो ऐसे अंधाधुंध बड़े ब्लास्टिंग और निर्माण से डिस्टर्ब हो गई है। अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल हालात काफी खराब लग रहे हैं।
दरअसल, हर साल बर्फबारी के समय बौख नाग बाबा के इस पर्वत पर राडी में रास्ता पूरी तरह ब्लॉक जाता है। इस दौरान गंगा और यमुना घाटी का संपर्क टूट जाता है। यमुना घाटी के लोग काफी लंबा फेर घूम कर  अपने जनपद मुख्यालय तक पहुंचाते हैं।

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