खरी खरी: धराली का असहनीय दुःख-दर्द और “इनकी” मौजमस्ती-हॉर्स ट्रेडिंग…!

खरी खरी: धराली का असहनीय दुःख-दर्द और “इनकी” मौजमस्ती-हॉर्स ट्रेडिंग…!
धराली में दुखी लोगों पर आफत का पहाड़ टूट पड़ा है वहीं कई नेता और अफसर और अन्य लोग इसे सुनहरे अवसर के रूप में देख रहे हैं, साथ ही कई लोग तो पिछले नौ दिनों से या यूं कहें कि एक हफ्ते से फूल पिकनिक मना रहे हैं… उत्तराखंड की धामी सरकार के साथ-साथ केंद्र का डबल इंजन का पूरा सिस्टम अभी तक इंसान छोड़ो कोई जानवर तक धराली से नहीं निकल पाया जबकि यह क्षेत्र चीन बॉर्डर से लगा हुआ संवेदनशील इलाका है. यह तो आपदा थी लेकिन अगर कोई विदेशी ताकतें कूटनीतिक तौर पर कोई इंटरनेशनल हमला करते हैं तो भारत सरकार के पास क्या प्लान है? रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था की तर्ज पर यहां खूब दावत मटन मुर्गा दारू पीकर पिकनिक मनाया जा रहा है… यहां गौर करने वाली बात यह भी है एक ओर धराली और पूरा देश विदेश रो रहा है तो दूसरी ओर सत्ताधारी पार्टी ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने के लिए हॉर्स ट्रेडिंग कर रही है… यह भी इतिहास में दर्ज रखा जाएगा… कहीं न कहीं प्रकृति का रौद्र रूप यूं ही नहीं देखने को मिल रहा है हमारी देवभूमि में….चारों धामों की स्थित करीब करीब ऐसी ही बना दी गई है, जिसका खमियाजा प्रकृति के रौद्र रूप के तौर पर देखने को मिल रहा है…केदारनाथ में आई तबाही के बाद भी हमने सीख नहीं ली उसके बाद ताजा उदाहरण उत्तरकाशी में है…! इससे पहले भी जोशीमठ, उत्तरकाशी कुमाऊं मंडल के तमाम जिलों में बरसात के दौरान तबाही के मंजर देखने को मिल चुके हैं..!
प्रकृति के साथ खुला खेल कर जो बारहमासा रोडऔर फिर ट्रेन पहाड़ पर चढ़ाने के भारी भरकम प्रोजेक्ट के साथ ही तमाम जल विद्युत परियोजनाओं का संचालन सरकारें कर रही है… उसी क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में कुछ-कुछ ट्रेलर प्रकृति ने वापस दिखाने शुरू कर दिए हैं और यह सब कुछ आजकल साफ-साफ देश दुनिया को दिख रहा है… पहाड़ों पर बड़ी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं बनाई जा रही हैं या फिर प्रस्तावित हैं उनको लेकर भी पर्यावरणविद् और विशेषज्ञ तमाम सवाल खड़े कर रहे हैं…वह धराली आपदा को क्लाउडबर्स्ट न बताकर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा और ग्लोबल वार्मिंग का असर बता रहे हैं… इसके साथ ही इसरो ने 2 साल पहले ही सचेत कर दिया था कि धराली को कहीं और शिफ्ट किया जाए लेकिन हमारे नीति नियंताओं के कानों में जूँ तक नहीं रेंगी….! अब करोड़ों अरबो रुपए लगाकर फिर से वहीं पर बसाने की बात कही जा रही है… इसके लिए सरकार कई योजनाएं बना भी रही है और तमाम माध्यमों से चंदा भी इकट्ठा कर रही है….अब इस चंदे का धंधा धरातल पर कितना लगता है यह हिसाब रखने वाला शायद ही कोई जागरूक नागरिक हो…!