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अफसरों के आदेश जेब में लेकर घूम रहे रेंजर साहब !

रेंजर का खुलेगा राज या फिर उपनिदेशक के कारनामे आएंगे सामने, संशय बरकरार...

बड़े साहब चले गए छुट्टी, रेंजर को बोला मैनेज कर लो!

तबादले के 9 दिन बाद भी नहीं हुई ज्वाइनिंग

देहरादून: वन विभाग में अफसरों की आपसी तनातनी अक्सर देखने को मिलती है। ऐसा ही एक मामला है राजाजी पार्क के अंतर्गत गोविंद वन्यजीव पशु विहार में तैनात एक रेंजर का। जो अपने वरिष्ठ अफसरों के आदेश जेब में लेकर घूम रहे हैं। तबादले के 9 दिन बाद भी रेंजर साहब ने ज्वाइन नहीं किया है। पहले से ही विवादों में रहे रेंजर और पूर्व उप निदेशक का झगड़ा कम होने की बजाय आगे खींचता जा रहा है। विवाद की शुरूआत राजाजी पार्क से ही शुरू हुई। इस दौरान इन रेंजर साहब पर धौलखंड रेंज में गड़बड़ी की शिकायत और जांच के बाद मामला सही पाए जाने पर तत्कालीन पीसीसीएफ जयराज ने उन पर कार्रवाई के आदेश दिए थे। इसके बाद रेंजर साहब ट्रेनिंग पर चले गए और उसके बाद उन्होंने अपनी तैनाती गोविंद वन्यजीव विहार पार्क पुरोला में करवाई।

कहानी में ट्विस्ट तब आया जब इसी कार्यालय में पूर्व उपनिदेशक कोमल सिंह ने ज्वाइन किया। पुराना विवाद होने के कारण दोनों अफसरों के बीच फिर तनातनी शुरू हो गई। इसके कुछ दिन बाद विगत 7 मार्च 2021 को रेंजर ज्वाला प्रसाद गौड़ को एक मामले में 40 प्रतिशत कमीशन लेने के आडियो वायरल होने के बाद पुरोला कार्यालय में अटैच कर दिया गया था। इसके बाद दोनों अफसर अपने-अपने स्तर से एक-दूसरे के घपले-घोटालों को मीडिया में लेकर आने लगे।

28 अगस्त 2021 को रेंजर ज्वाला प्रसाद का तबादला पुरोला से गंगोत्री नेशनल पार्क कर दिया गया। राजाजी पार्क के निदेशक डीके सिंह की ओर से जारी आदेश के आधार पर ज्वाला प्रसाद गौड़ को प्रशानिक आधार पर तत्काल प्रभाव से नवीन तैनाती स्थल पर जाने के आदेश दिए गए। लेकिन, ज्वाला प्रसाद इन सभी आदेशों को जेब में रखकर घूम रहे हैं। साथ ही उनका उप निदेशक देवीप्रसाद बलूनी पूरी-पूरी मदद कर रहे हैं। उप निदेशक बलूनी करीब आठ दिन की छुट्टी पर चले गए हैं और किसी नंबर से फोन भी नहीं उठा रहे हैं। वहीं, निदेशक राजाजी पार्क डीके सिंह भी गोलमोल जवाब दे रहे हैं कि हमने तो तबादला कर दिया था। जब उप निदेशक बलूनी आएंगे और गंगोत्री पार्क से रिलीव होकर दूसरे रेंजर वहां आएंगे तभी कुछ होगा। डीके सिंह यह भूल गए कि उन्होंने ही अपने आदेश में प्रशासनिक आधार पर तत्काली ज्वानिंग के आदेश दिए हैं।

दूसरी ओर स्थानीय नेता व भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य जनक रावत और कृपाल सिंह राणा का कहना है कि उनसे ज्वाला प्रसाद गौड़ 40 प्रतिशत कमीशन मांग रहे थे। साथ ही उन्होंने कहा कि इस संबंध में उन्होंने सीएम हेल्पलाइन में भी शिकायत दर्ज करवाई थी। फिर भी एक रेंजर की ऐसी तानाशाही गोविंद वन्यजीव विहार में देखने को मिल रही है। मामले में अफसरों का गोलमोल जवाब और हीलाहवाली कहीं न कहीं इस विवाद को तूल देता जा रहा है। कुछ तो ऐसा है जो रेंजर साहब वहां से जाना नहीं चाहते, अधिकारी चाहे आर्डर करें या फिर सस्पेंड।

दूसरी ओर पूर्व उप निदेशक रहे कोमल सिंह के अनुसार ज्वाला प्रसाद पहले एक शिक्षक थे और देवीप्रसाद बलूनी भी एक शिक्षक रहे हैं। ऐसे में दोनों मास्टर साहब मिलकर इलाके में कुछ नया गुल खिलाने वाले हैं। उन्होंने बताया कि राजाजी पार्क में तैनात रहते वक्त उन्होंने एक मामले में दो रेंजरों को अपने रिश्तेदारों के खाते में विभागीय बजट डाला था। इसके साथ ही गोविंद वन्यजीव विहार में तैनात रहते वक्त भी रेंजर ज्वाला प्रसाद ने अपने साले के खाते में पैसे ट्रांसफर किए थे। साथ ही वह स्थानीय निवासी होने के कारण विभागीय नियमों की भी धज्जियां उड़ा रहे हैं।

वहीं, रेंजर ज्वाला प्रसाद ने सभी आरोपों को मनगढंत और पूर्वाग्रह से आधारित बताया है। उन्होंने कहा कि अगर मेरा तबादला हुआ तो उनके क्षेत्र में हुए कई घोटाले जंगल और जमीन में ही दफन होने की आशंका है। इसके साथ ही उन्होंने करीब 12 प्रमुख मामलों में अनियमितताएं होने का आरोप लगाया है।

दोनों अफसरों की तनातनी के बीच यह गौर करने वाली बात है कि विभागीय अधिकारियों आदेश जेब में लेकर घूमना कितना उचित है।

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